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रुचि के स्थान

अदरौना (लेहड़ा) देवी का मंदिर

यह जनपद का महवपूर्ण तीर्थ स्थल है इस स्थल पर फरेंदा तहसील मुख्यालय से ब़जमनगंज मार्ग पर पॉंच कि0मी0 चलकर सड्क से 02 कि0मी0 पश्चिम जाकर पहुचा जा सकता है | प्राचीनकाल में यह स्थल आद्रवन नामक घने जंगल से आचादित था | यहाँ पवह नामक प्राचीन नदी (अब नाला) के तट पर मां बनदेवी दुर्गा का पवित्र मन्दिर अवस्थित है | लोकश्रुति एवं धार्मिक मान्यतायों के अनुसार इस देवची मन्दिर की स्थापना महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास काल में स्वयं अर्जन ने की थी | इस धार्मिक स्थल का प्राचीन नाम ‘अदरौना देवी थान’ रहा जो वर्तमान में लेहडा देवी मन्दिर के नाम से विख्यात है | प्राचीन लोक मान्यता के अनुसार महाभारत काल में पांडवों ने अपने अज्ञातवास की अधिकांश अवधि यही सघन ‘आर्द्रवन’ में व्यतीत की | इसी अवधि में अर्जुन ने यहाँ वनदेवी की अराधना की थी | आराधना से प्रसन्न होकर वनदेवी मां भगवती दुर्गा ने अर्जुन को अनेक अमोघ शक्तियां प्रदान की थी | तद्पश्चात मां भगवती के आदेशानुसार अर्जुन ने इस शक्ति पीठ की स्थापना की थी | बाद में यही ‘अदरौना देवी’ के नाम से प्रसिद्ध हुई एक अन्य जुनश्रुती के अनुसार प्राचीनकाल में ‘पवह नदी’ को नाव से पार कर रही एक युवती को जब नाविको ने बुरी नीयत से स्पर्श करना चाहा था, तो वनदेवी मां ने उस युवती की रक्षा स्वयं प्रकट होकर की थी, तथा नाविकों को नाव समेत वही जल में समाधि दे दी थी | इस घटना सें भी इस स्थल की महत्ता प्रतिपादित होती है | मन्दिर से कुछ ही दूरी पर एक प्राचीन तपस्थली (कुटी) कई एकड् परिक्षेत्र में अवस्थित है, जहां अनेक साधू संतों की समाधिया है, जो इस तपस्थली से सम्बद्ध रहे और अपने जीवनकाल में यहा तपस्यारत रहे | इन्ही साधू योगियों में एक प्रसिद्ध योगी बाबा वंशीधर का नाम आज भी संतों द्वारा अत्यंत आदर के साथ लिया जाता है | वे एक सिद्ध योगी के रूप में विख्यात रहे हैं | योग बल पर उन्होंने कई चमत्कार और लोक कल्याण के कार्य किये थे | बाबा की शक्ति एवं भक्ति से प्रभावित कई वन्य जीव जंतु भी उनकी आज्ञा के वशीभूत रहे | इनमें एक शेर एंव मगरमच्छ आज भी चर्चा के विषय बनते हैं, जिन्हें बाबा वंशीधर ने शाकाहारी जीव बना दिया था |

कटहरा के उभय शिवलिंग

जनपद मुख्यालय से लगभग बारह कि0मी0 पश्चिम जंगल के छोर पर कटहरा ग्राम के समीप दो सामंतर टीलों पर दो प्राचीन शिवलिंग, (कालें पाषाण खण्डों से निर्मित) है | इनमें से एक शिवलिंग पर स्थानीय ग्रामवासियों ने एक मन्दिर का निर्माण अभी हाल के वर्षो में करा दिया है | किन्तु दूसरे टीले पर स्थित शिवलिंग ज्यों का त्यों खुले आसमान के नीचे मौजूद है | ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर यह क्षेत्र शैब एवं बौद्ध मतावलंबियों से सम्बद्ध रहा है | वर्तमान में यहां शिवरात्रि के अवसर पर एक सांस्कृतिक मेले का आयोजन वर्षों से होता चला आ रहा है |

बनर सिहागढ़ (वनरसिया कला)

जनपद के फरेंदा सोनौली राजमार्ग से चलकर, कोल्हुई से आगे ‘एकसड़वा’ नामक स्थान से पूरब दिशा में सड़क मार्ग से चलकर राजपुर मुड़ली होते हुए ‘बनरसिंहागढ’ (वनरसिया कला) पंहुचा जा सकता है | मुख्यालय से पश्चिम जंगल क्षेत्र से ‘चानकीघाट’ होते हुए भी सीधे इस स्थल तक पहुचा जा सकता है | यहां लगभग 35 हेक्टेयर भूखण्ड पर कई टीले, स्तूप एवं तालाब मौजूद है | यहां एक प्राचीन शिवलिंग एवं एक चतुर्भुजी मूर्ति भी विद्मानमान है | शिवरात्रि के अवसर पर यहां बडा मेला लगता है | कतिपय विद्वान इसे बीरगाथा काव्य के नायक अल्हा उदल के परमहितैषी, सैयदबरनस का किला भी मानते है | यह स्थल इस द़ष्टि से सामुदायिक सौहार्द का एक श्रेष्ट उदाहरण सिद्ध होता है | कई पुरातत्वविद इसी को ‘देवदह’ भी मानते हैं |

इटहियां का शिव मंदिर

जनपद के उत्तर प्रदेश की तहसील निचलौल के मुख्यालय से चलकर ठूठीबारी मार्ग के बीच से इटहियां पंहुचा जा सकता है| यहॉं प्राचीन शिव मन्दिर अवस्थित है| मेले का अयोजन यहा स्थानीय जनों के सहयोग से प्रतिवर्ष होता है, प्रति सोमवार को काफी भीड़ एकत्र होती है|यह मंदिर भारत के यूपी के महाराजगंज जिले के गोडौरा बाजार से 5 किमी दूर महाराजगंज से 39 किमी दूर निकलौल से लगभग 13 किमी की दूरी पर स्थित है और इसे महाराजगंज-निकलौल-इटाहिया रोड के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और 1 968-69 में एक महंत द्वारा बनाया गया है जिसका समाधि परिसर में भी बनाया गया है। जिला मजिस्ट्रेट, महाराजगंज की मंदिर प्रशासन की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी है। यहां कुछ धार्मिक समारोहों को बहुत शुभ माना जाता है, जैसे रुद्राभिषेक, मुंडन, विवाह इत्यादि। लोग श्रवण महीने और शिवरात्रि दिवस के दौरान बड़ी संख्या में इस मंदिर में जाते हैं। (समय: 6 पूर्वाह्न 8 बजे, सभी दिन खुला, सोमवार- विशेष दिन)

महदेइयां का विष्णु मंदिर

यह जनपद मुख्यालय से दक्षिण भिटौली कामता मार्ग पर स्थित है | इसकी महत्ता इस रूप में निर्विवाद है कि यहॉं भगवान की मूर्ति स्थित है, जो अति प्राचीन है | विष्णु मंदिर परिसर में ही स्थित तालाब से अत्य अनेक महत्वूर्ण मूर्तियां भी प्राप्त हुई है |

बोकड़ा देवी स्थल

मुख्यालय से फरेंदा जाने वाले मार्ग पर पकडी रेंज चौराहे से पश्चिम वनमार्ग होते हुए 3 कि0मी0 जंगल मार्ग पर ही एक उचें टीलानुमा स्थल पर बोकडा देवी मंदिर अवस्थित है |

सोनाडी देवी स्थल

चौक वन क्षेत्र में यह स्थल है | वर्तमान में यहा 30-35 फीट उचा टीला स्तूपाकार विद्वमान है और आसपास छोट – बडे कई सरोवर भी है | इस द़ष्टि से सोनाडी देवी स्थल का महत्त्व और बढ जाता है | डा० कृष्णानन्द त्रिपाठी सोनाडी देवी स्थल को ‘श्रामणेर स्थल’ के रूप में मानते हैं क्योकि इस स्थल पर स्थित विशाल वट वृक्ष हजारो वर्ष पुराना बताया जाता है जिसकी लटकी हुई शाखाएं भी अब वृक्ष बन चुकी है | ये वृक्ष एक अदभुत दृश्य प्रस्तुत करते है| सोनाडी देवी स्थल पर गोरखपंथियों का एक मठ स्थापित |

प्राचीन भगवान जगन्नाथ का मन्दिर

यह मन्दिर गोरखपुर-महराजगंज मार्ग पर स्थित शिकारपुर से 07 कि०मी० पर नहर नारायणी के दाहिने तट पर ग्राम बडहरा महंत में स्थित है। वर्ष सन 1786 में स्थापित इस मन्दिर की महत्ता के बारे में बताया जाता है कि जगन्नाथपुरी उड़ीसा से वैष्णव रामानुजदास अपने शिष्यों के साथ मुक्ति नारायण नेपाल जा रहे थे। रात्रि में यहाँ विश्राम करते हुए उन्हे स्वप्न आया जिसमें भगवान जगन्नाथ जो कि कलियुग के प्रधान देवता व भगवान विष्णु के अचीवतार हैं, ने स्वपन में उनसे कहा कि मैं यहाँ मैं निवास करना चाहता हूँ, तुम मेरे विग्रह की स्थापना करो। उस समय यह क्षेत्र जंगल था और नेपाल राज्य के अधीन था। स्वप्न देखने के बाद रामानुज यहाँ तपस्या करने लगे । राजा को जब यह ज्ञात हुआ तो वे यहाँ आकर महात्मा जी से मिले। महात्मा जी ने स्वप्न की बात राजा जी को बताई तो राजा ने सहर्ष तैयार होकर जगन्नाथ भगवान को विग्रह लाकर प्राण प्रतिष्ठा करने हेतु निवेदन किया ततपश्चात रामानुज पदयात्रा कर पुरी गये तथा विग्रह लाकर जगन्नाथ भगवान मुर्ति की स्थापना कर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया तबसे यहाँ नियमित रूप से नारद पाश्चरात्र व नीलाद्रि महोदय पद्धति से पूजा होती है। यहाँ के मुख्य पर्व श्रीरामनवमी,चन्दन यात्रा,स्नान यात्रा,भगवान जग्गंनाथ रथयात्रा,झूलोत्सव,श्रीकृष्ण जन्माष्टमी,विजयादशमी आदि है| हर मंगल व शनिवार को प्रवचन व कीर्तन होता है|यह मन्दिर पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस अंचल क लोगो की आस्था का केंद्र है|

बी-गैप

नारायणी नदी नेपाल राष्ट्र के पहाड़ियों से लगभग 80 किमी की यात्रा कर नेपाल के जनपद नवलपरासी एवं बिहार प्रान्त, भारत देश के जनपद बगहा के सीमावर्ती गाँव झुलनीपुर क्षेत्र से मैदानी भाग में प्रवेश करती है। यहाँ से इसका नाम बड़ी गण्डक नदी हो जाता है। यहाँ से इस नदी की मध्य धारा भारत एवं नेपाल राष्ट्र की सीमा विभाजित करती है। भारत के पूर्व प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु ने बिहार के पश्चिमोत्तर क्षेत्र एवं उत्तर प्रदेश के पूर्वोत्तर क्षेत्र की सिंचाई हेतु नगर प्रणाली विकसित करने के उद्देश्य से नेपाल के तत्कालीन शासक राजा महेंद्र विक्रम शाह से 1959 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। इसके तहत वाल्मीकि नगर बैराज तथा पश्चिमी मुख्य गण्डक नहर का निर्माण नेपाल के भू-क्षेत्र से होना था। भौगोलिक एवं तकनीकी कारणों से नेपाल राष्ट्र की जमीन लेना गंडक नगर प्रणाली के निर्माण हेतु अपरिहार्य था। इस जमीन के बदले गण्डक नदी के दायें तट पर स्थित नेपाल सीमा तक के भू-भाग को बाढ़ एवं कटाव से बचाने की जिम्मेदारी भारत राष्ट्र की उक्त समझौते में समावेशित है।

इसके तहत ए0गैप बांध लम्बाई 2.5 किमी, बी0गैप बांध लम्बाई 7.230 किमी, नेपाल बाँध लम्बाई 12 किमी एवं लिंक बाँध लम्बाई 2.5 किमी का निर्माण भारत राष्ट्र के उत्तर प्रदेश सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग का सिंचाई खण्ड-2 महराजगंज द्वारा कराया गया है। कटाव एवं बाढ़ की रोक-थाम हेतु बी0गैप बांध पर 16 अदद स्पर, नेपाल एवं लिंक बाँध पर 5 अदद स्पर का निर्माण किया गया है। बाढ एवं कटाव के बचाव हेतु प्रति वर्ष केन्द्रीय जल आयोग (CWC) की उच्च स्तरीय समिति (GHLSC-Gandak High Level Sanding Committe) बाढ़ के बाद गहन निरिक्षण कर कार्यों हेतु अपनी संस्तुति करती हैं। उक्त के आधार पर सिंचाई खण्ड-2 महराजगंज द्वारा परियोजना तैयार कर उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग की तकनीकी सलाहकार समिति की बैठक में क्षेत्रीय अधिकारीयों द्वारा प्रस्तुत की जाती है। उसके अनुमोदन के पश्चात परियोजना उ०प्र० बाढ़ नियंत्रण परिषद की स्थायी संचालन समिति द्वारा स्वीकृत की जाती है। तथा इसका टेक्निकल अप्रैजल गंगा बाढ नियंत्रण समिति से प्राप्त कर आवश्यक औपचारिकतायें पूर्ण कर बाढ़ पूर्व कार्य कराकर बाँध को सुरक्षित किया जाता है। उक्त कार्यों में खर्च का शत प्रतिशत (Reimbursement) प्रतिपूर्ति भारत सरकार द्वारा की जाती है।

वाल्मीकि नगर बैराज, ए -गैप , बी – गैप, गंडक नदी का चौड़ा पाट, उत्तर दिशा में दूर तक फैली हुइ पहाड़िया सुन्दर मगर भय उत्पन्न करने वाली प्राकृतिक सौंदर्य का अदभुत नमूना है। झुलनीपुर के पास स्थित नदी के तट पर शंकर भगवन का मंदिर , गज ग्राह मंदिर , कल -कल -छल -छल बहती हुइ नदी निश्चित रूप से एक पर्यटल स्थल के रूप में विकसित है जहाँ दूर दूर से लोग आते हैं। इस स्थल का उपयोग फिल्म सिटी वाले सुन्दर लोकेशन के रूप में कर सकते हैं। यदि भारत अवं नेपाल दोनों मिलकर ऐसे एक पर्यटल स्थल के रूप मर विकसित करे तो क्षत्र का समग्र आर्थिक विकास हो सकता है।

अन्तराष्ट्रीय सीमा सोनौली

भारत नेपाल संबंधो की सदियों पुरानी सामाजिक,आर्थिक, राजनौतिक आदि संबंधों की अद्भुत पहचान एवं भारत नेपाल मैत्री की विशाल सोनौली प्रवेश द्वार भारत वर्ष का सर्वाधिक महत्वपूर्ण द्वार है जहाँ पर प्रतिदिन लगभग 1000 मालवाहक गाड़ियाँ, 100 पर्यटक गाड़ियाँ प्रतिदिन नेपाल जाते हैं। इसी राजमार्ग से लगभग 5000 से अधिक पर्यटक प्रतिदिन नेपाल जाते है चूँकि यह खुला बॉर्डर है इसलिए दोनों देशों के लोग पैदल आते जाते है जो भारत नेपाल मैत्री का सर्वाधिक उदाहरण है। एक दृष्ट्ब्य स्थल के रूप में अभिहित है।

वर्तमान में यह चतुर्श्मार्गीय (फोरलेन) से जुड़ा हुआ है।

सोहागिबरवा वन्य जीवन अभयारण्य

सोहागिबरवा वाइल्ड लाइफ डिवीज़न पहले गोरखपुर वन डिवीजन का हिस्सा था और उस क्षेत्रीय डिवीजन द्वारा प्रबंधित किया जा रहा था। 1 9 64 में, गोरखपुर वन विभाजन को उत्तरी गोरखपुर और दक्षिणी गोरखपुर वन विभाग में सरकार ने विभाजित किया था। जो बाद में 1 9 65 में समाप्त हो गया था, इस प्रकार केवल गोरखपुर वन विभाग का अस्तित्व बनाए रखा गया। बाद में, बेहतर वन प्रबंधन के लिए, 1 9 78 में उत्तर गोरखपुर और दक्षिण गोरखपुर डिवीजन में विभाजन को फिर से दो डिवीजनों में विभाजित किया गया। 1 9 87 तक, सोहागिबरवा वन्य जीवन विभाग को उत्तर गोरखपुर क्षेत्रीय वन विभाग के रूप में प्रबंधित किया जा रहा था।

उचित पारिस्थितिक, पुष्प, पशु, प्राकृतिक और भौगोलिक उपस्थिति के कारण इसे बनाए रखने, और अपनी जंगली जीवन और पारिस्थितिकी विकसित करने के लिए महसूस किया गया था, जो अभयारण्य के अंतर्गत क्षेत्र को लाने के लिए जरूरी है।

सोहागिबरवा वन्य लाइफ अभयारण्य भौगोलिक दृष्टि से 260 58 ” से 270 25 ” उत्तर अक्षांश और 83 ओ 23 ” से 840 10 ” पूर्व में महाराजगंज और कुशीनगर जिले के रेखांश के बीच स्थित है। सोहागिबरवा वन्य लाइफ अभयारण्य भौगोलिक दृष्टि से 260 58 ” से 270 25 ” उत्तर अक्षांश और 83 ओ 23 ” से 840 10 ‘पूर्व देशांतर महाराजगंज और कुशीनगर जिले सोहागिबरवा वन्यजीव अभ्यारण्य के बीच बीटी रेल और रोध तक पहुंचा जा सकता है। निकटतम रेलवे स्टेशन गोरखपुर जेएन है सड़क गोरखपुर से महाराजगंज तक की दूरी लगभग 56 किलोमीटर है। यह गोरखपुर-नार्कातिगंज-मुजाजफ़ारपुर रेलवे लाइन पर सिस्वा रेलवे स्टेशन से भी जुड़ा हुआ है।